Wednesday 17 January 2018

Safar

2 वक्त की रोटी कमाने आज इतनी दूर आ निकला हूँ,
पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो मैं अकेला ही अकेला हूँ।

एक एक सेकंड को जोर कर ये जिंदगी ऐसे गुजर रही,
मानो रास्ता स्थिर हो और मंजिल चल पड़ी।


कुछ अजनबी अपने बन गए कुछ अपने हमसे छूट गए,
ज़िन्दगी की सफर में ना जाने कितने रूठ गए।

इस समय के साथ भी अजीब खेल खेल रहा हूँ,
जिस खुशी को पाने निकला था आज उसी को झेल रहा हूँ।


सोफे पे बैठ कर जाना आराम तो लकड़ी की कुर्सी में ही थी,
वो सुकून की नींद अब तक ना सोया जो खुले आसमां के नीचे छत पे मिलती थी।

रेस्टुरेंट की स्वाद अब फीकी पर जाती है जब स्कूल की टिफिन की याद आती है,
dining table छोर कर फर्श पे बैठ जाता हूँ, हर 1 निवाले के साथ बचपन मे खो जाता हूँ।

पैसे कमाने की लालच में मैंने हर शर्त को कबूल किया, कब उम्र बीत गया पता भी ना चला और ज़िन्दगी जीना भूल गया।

                                                                                                                                          - गौतम

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